सबको बराबर क्यों बताते नहीं हो

तुझपे भी हंसी आती है,
कभी कभी ही
पर बड़ी आती है।

सबसे दयालु का तमगा भी तुझे ही,
और फिर तुमसे ही निरीह जीवों के
लहूं की बू आती है।

तुझपे भी हंसी आती है,
कभी कभी ही
पर बड़ी आती है।

सबसे ताकतवर की दी ख्याति तुम्हे ही,
और फिर “ज़ाहिल” कार्टून-लेखों में उल्लेख भर से,
करते रक्तपात और बचाते तुम्हें ही

तुझपे भी हंसी आती है,
कभी कभी ही
पर बड़ी आती है।

बड़ा कौन कह दो सच क्यों बताते नहीं हो,
आदम को आदम से लड़ाते ही क्यों हो,
तुम्हारे शांति की सीख से सज्जन हुआ कौन,
सबको बराबर क्यों बताते नहीं हो?

सन्नी कुमार ‘अद्विक’

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