कल शाम मिली थी वो
थी थोड़ी सकुचाई,
थोड़ी शर्माई,
पुछा जब हमने,
कारण उन्होंने अपनी व्यस्तता बताई।
वो दिखी जो परेशान,
उनसे कहा था हमने,
मत दो ध्यान, ए जानेबहार,
ये गुल कर लेगा, थोडा और इन्तेजार।।
वो हुयी थोड़ी सहज,
थोड़ी मुस्काई भी थी,
लाल भाव से चेहरा,
वो बेताब सी थी।
टोका उन्होंने, कहा,
बातें अच्छी करते हो आप,
कि सुनाओ कुछ ऐसा,
मै छू लूं आसमान।।
मुझे आता ही क्या है,
बस उनकी तारीफ़,
हम लगे तब पढने,
जो भी भाव थे उनके।
कहा हमने उनसे,
वो ग़ज़ल की पूरी किताब है,
अब पढूं मै कौन कलाम,
अब ये वो ही बताये।।
उन्होंने इशारों में कहा,
जो भी नाचीज फरमाए,
पूछा फिर हमने उनसे,
कि तुम्हारे नैनों में जो लिखा है,
कि जो ये होठ कहने को बेताब,
कि जो गूंजती है तेरे कानो में,
कि जो धड़कन तेरे गाये,
बोलो पढू कौन फज़ल,
की ये गुल कौन सा नगमा गाये।।
वो वापस सकुचाई,
थोड़ी शर्माई,
नजरें मिलाके,
थोडा मुस्कुरा के,
सिमटी मेरी बांहों में,
बोली आज तुम अपनी धड़कन सुनाओ,
हमारी धुन को मिलवाओ,
जो भी है प्यास उनको, आज पूरी कर जाओ।।
गिर गए तब हम प्यार में,
फिर संभलना कहाँ था,
खो गए उनकी आँखों में,
फिर मिलना कहाँ था।
क्या बात, क्या दुनिया,
कुछ भी याद न रहा,
हम लिपटे रहे कब तक,
कुछ ध्यान न रहा।।
उनके दिल की धड़कन को,
महसूस तब की थी,
है कितना प्यार हम में,
उस तड़प में देखी थी।
उनकी धड़कन तब बिलकुल,
मेरे धुन गा रही थी,
क्यूँ होता है हर पल में इन्तेजार,
उस शाम बयां हुयी थी।।
हाल हमारा एक सा ही,
जो दूर होते है,
ढेरों बातें होती है,
और जब साथ होतें है,
ये धड़कन, ये साँसे,
ये आँखें बोलती है,
और तब होठ हमारा,
बिलकुल सहमा होता है।।
है एक सच ये भी,
की जो धड़कन गाती है,
जो नजरें सुनाये,
साँसों में जो एहसास है,
वो ये लब कहाँ से लाये।
शायद उनको भी ये मालूम है,
जो सुनती मिलके, है धड़कन वो,
करके होठों को खामोश,
कहती है हर बात, नजरों से वो।।
उस शाम यही हुआ था,
बातें शुरू होते ख़तम थी,
और हम आँखों में उलझकर,
कहीं और खो गए थे।
बातों को छोड़कर हम,
धडकनों को सुन रहे थे,
साँसों से मिला सांस हम,
एहसास जता रहे थे।।
कुछ भी न था कहने को,
सुनना भी नहीं था कुछ,
हम नजरों में डूब कर तब,
एक दूजे में खो गए थे।
क्या थी बेकरारी,
क्यूँ थे मिलने को बेचैन,
आया समझ उस शाम,
हमें उस एहसास को जीना था।
-सन्नी कुमार
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