कविताएं लिखता था जिस पते से,
वहीं फिर लौट आया हूँ,
है आती मुहब्बत की खुशबू जिस बाग में,
वहीं आज फिर से आया हूँ,
शाम ढलते ही फूलों से,
जहाँ अलग आती है ‘खुशबू’ रोज,
उसे अपने हर ‘आज’ में भरने,
मैं दिल्ली लौट आया हूँ..
भले क़िस्सों को जीना, ख़्वाबों में होना,
हर पल में मुस्कुराना, मैं भूल आया हूँ।
पर गर पढोगे कभी, फ़ुर्सत में मुझे,
कुछ पन्ने पीछे ही सही, मैं सब छोड़ आया हूँ।
ये क़िस्मत है मेरी, या साज़िश तुम्हारी,
जो नए हुनर की तलाश में तुम तक,
मैं दिल्ली लौट आया हूँ..
©सन्नी कुमार ‘अद्विक’
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