कभी मुग्ध हो मेरी कविता पर..

कभी मुग्ध हो मेरी कविता पर,
तुम अपने कहानी में जो मोड़ बनाओ,
कभी मान मेरी बातों को,
तुम अपने जीवन में जो नए अर्थ सजाओ,
कभी खोकर मेरी आँखों में,
तुम अपने ख़्वाबों में जो मुझे बसाओ,
हो सरस-सुफल मेरा यह जीवन,
तुम अपने में जो मुझे बसाओ..
©सन्नी कुमार ‘अद्विक’

क्यों न जनता बागी हो जाए?

हाल के दिनों में जो घटनाएं बिहार में फलित हुयी है उनमें मोटा मोटा ये रहा कि सरकार शराब बन्दी को लेकर सरकार काफी शख्त दिखी और इसके लिए उन्हें धन्यवाद, पर क्या शराब ही एकमात्र बिमारी है इस बदहाल बिहार का? नहीं! यहां बेरोजगारी, अशिक्षा, स्वास्थ्य, गरीबी, जनसंख्या और सबसे घातक बीमारी, अपराध रहा है पर दशकों से बिहार की आम जनता न्याय को तरस रही है और उन्हें मिला कुछ नहीं, बल्कि अपराध और अपराधी खुले घूमते है, चाहे शहाबुद्दीन हो, राजबल्लभ, रॉकी यादव् या सैकड़ों छोटे बड़े नाम जिन्होंने आम जन का शोषण किया हो… बिहार की मिट्टी मानों अपराध के लिए और भी उर्वर हो गयी है। यहाँ निवेश के नाम पर कुछ नहीं है, काश यहाँ के करोड़पति नेता ही कुछ बिजनेस शुरू करते और लोगों को रोजगार देते पर नही ये गरीबी को सिर्फ मुद्दा मानते है और ये वही मुद्दा है जो इन नेताओं को गद्दी तक पहुंचाता है सो ये कतई गरीबी को खत्म या कम करने का प्रयास नही करेंगे.
इन्हीं शिकायतों को, मेरी पीड़ा को यहाँ कविता के रूप में पढें, सहमत हो तो शेयर करें।

तुम निर्लज्जों के ओछे कर्मों से,
लज्जित हुए हम पछताते है,
अखबारों के पन्ने हरदिन जब,
तुम्हारे काले कर्मों से भरे पाते है,
क्यों देते है वोट तुम्हें हम,
सोंच सोंच जल जाते है।

कैसे हो तुम जनता के सेवक,
जो जनता का सोशन करते हो,
फटेहाल हर दूसरी जनता,
और तुम मेर्सेडीज में घूमते हो,
करते हो तुम कौन व्यापार,
जो अकेले ही फलते हो,
रोजगार के त्रस्त है जनता,
क्यों उनको भी अवसर नहीं देते हो?

बाँट बाँट कर धर्म-जात में,
तुम अपना हित बस साधते हो,
टोपी-तिलक और ऊंच नीच में,
जनता को भरमाते हो,
और अभिनव भारत के सपने पर,
मौन मोहन बन जाते हो।

लूट-गबन और हत्या से तुम,
कौन सी कीर्ति रचते हो,
शर्म नहीं आती क्या तुमको,
जो दोहरी नीति रखते हो,
जनता को तुम नित नियम सिखाते,
और खुद अपराधियों से साठ-गांठ रखते हो,
जनता को मिले अब न्याय भी कैसे,
तुम जो न्याय को बंधक रखते हो..

कहो क्यों न जनता बागी हो जाए,
और फ़ेंक उखाड़े सिस्टम को,
क्यों न उठा ले शस्त्र खुदी हम,
न्याय, धर्म की रक्षा को,
मिलते है जो अपराध को शह अब,
क्यों न मार भगाये इन नाकारों को,
कब तक सहे आखिर हम जनता,
तुम भ्रष्ट सत्तासुख लोभियों को?

अब जब मिलता न्याय नहीं,
न बनती है हक़ में कानून,
कब तक रखे धैर्य हम जनता,
कब तक रखें हम सब मौन,
क्यों न खुद की किस्मत अब खुद ही लिख लें,
कहो, अब क्यों न हम बागी हो जाए?
-सन्नी कुमार

20161019_150921

तू भेद न कर

दिल ने लाख समझाया कि तू भेद न कर,
मानव है मानवता से बैर न कर..
रंग, बोली, धर्म-जात के है भेद बेवजह,
तू जी खुद को औरों से रंज न कर..

पर वो दिल की क्यों सुने कि वो दिमाग जो था,
कहा डपट कर कि रह औकात में तू,
और देशी संविधान से बैर न कर.
नहीं पांचो ऊँगली बराबर तू जीद न कर,
हाँ तू जोड़ लगा सबको अपना मोल बता,
पर है सब एक, ये बेवकूफी न तू हमको बुझा..

-सन्नी कुमार

बिहारी हूँ

बिहारी हूँ,
मेहनत करता हूँ, पर पंजाब में,
फैक्ट्री लगाता हूँ, पर मौरीसस में,
आईएएस, आईपीएस, नेता खूब बनता हूँ,
और जब शांति से जीना हो तो दिल्ली, बंगलौर, मुंबई शिफ्ट करता हूँ..

बिहारी हूँ,
हर साल छठ में अपने घरवालों से मिलने आता हूँ,
उनको मुंबई, गुजरात, दिल्ली की समृद्धि सुनाता हूँ,
मिलता हूँ बिछड़ो से, कोसता हूँ नेताओं को,
फिर छुट्टी ख़तम, ट्रेनों में ठूस-ठूसा कर प्रदेश लौट जाता हूँ..

बिहारी हूँ,
बुद्ध, महावीर, जानकी से लेकर
चाणक्य, मौर्य, अशोक आर्यभट तक पे इतराता हूँ..
पिछड़ गया हूँ प्रकृति पथ पर,
पर राजेन्द्र, दिनकर, जयप्रकाश की बातों से खुद को खूब लुभाता हूँ..

बिहारी हूँ,
पढ़ लिख कर बिहार छोड़ पलायन का राश्ता चुनता हूँ,
राजनीती भी समझता हूँ पर मैं परदेशी वोट गिरा नही पाता हूँ,
ठगा जा रहा हूँ वर्षों से फिर भी जाति मोह से उपर नही उठ पाता हूँ,
खुद कुछ खास कर नही पाया सो अब नेताओं को दोषी बताता हूँ…

बिहारी हूँ,
मैं इतिहास, भविष्य के मध्य वर्तमान को क्यूँ बुझ नहीं पाता हूँ?

–सन्नी कुमार

ऐसे उदाहरण हम प्रस्तुत करें

Sunny-Kumar (20)तुम भोग विलासिता के पश्चिम हो,
हम योग द्वीप के पूरब है,
तुम रोजा, चाँद के दीवाने हो,
हम सूरज को पूजने वाले है।

तुम्हे इस मिटटी में दफन है होना,
हम अग्नि में जल जाने है,
है पन्थ अलग, हर चाह अलग,
दोनों का विस्तार अलग।

तुम हो एकलौते अल्लाह के उपासक,
हम हर तत्व पूजने वाले है,
सो तुम देते हो संज्ञा काफ़िर की,
हम भी अब म्लेच्छ कहने से नहीं कतराते है।

है जान फूंका दोनों के अंदर,
और रक्त का रंग भी एक सा है,
दोनों को है दो दो नयन,
पर सब समान देखना भूल जाते है…

तुम खुद को अरबी से जोड़ते,
और मैं गर्वी हिंदुस्तानी हूँ,
तुम क़ुरआन को लानेवाले,
मैं गीता का शाक्षी हूँ।

तुम को यकीन अरबी मुहम्मद पे,
मैं सेवक सनातनी राम का हूँ,
तुमको मिला अमन का सन्देश,
और मुझे न्याय, धर्म की रक्षा का,
है सन्देशो में समानता फिर,
क्यों हम और तूम अब उलझे है?

अमन फैलाओ अहिंसा से तुम,
न काफ़िर कह कर रक्तपात करो,
मैं ईद मिलूं गले लग तुमसे,
तुम इदि में वन्देगान् करो।

है दोनों हम हिन्द धरा पर,
की इसका मिलके जयघोष करें।
दुनिया समझे मजहब के मतलब,
ऐसे उदाहरण हम प्रस्तुत करें।
© -सन्नी कुमार

अच्छा लगता है..

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Dedicated to Balika Vadhu, My beautiful wife

मेरी बेवक़ूफ़ियों पर, जब तुम अल्हड़ मुस्काती हो,
मुझे लुभाने की ख्वाहिश में, जब तुम गाने गाती हो,
बात बात में, मेरी ही बात, जब तुम लेकर आती हो,
दिल रीझता है, अच्छा लगता है, जब ऐसे प्यार जताती हो…

सुबह सवेरे जब तुम सज धज कर, मुझे जगाने आती हो,
या घर से निकलते वक़्त, जब तुम रुमाल देने आती हो,
मेरे भूलों को भूल अब जब तारीफों के पुल बांधती हो,
मन मुस्काता है, अच्छा लगता है, जब तुम अपना सर्वस्व बताती हो।

कल तक था जिस आस में जिन्दा,
तुम वो सावन लेकर आयी हो,
था अतीत का जो दर्द सहेजे,
तुम उन्हें बहाने आयी हो।

हाँ कहता रहा हूँ तुम ख्वाब नहीं,
अब लगता है, तुम उन ख्वाबों को संवारने आयी हो।
जिंदगी जीऊँ मैं और भी बेहतर,
इसीलिए मेरे जीवन में,
‘बालिका-वधू’ तुम आयी हो।
-सन्नी कुमार

कैसे कह दूँ मैं ईद मुबारक?

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कैसे कह दूँ मैं ईद मुबारक??

जानता हूँ फितरत अब जब,
की कैसे निर्दोषों की बलि चढ़ाते हो,
अमन का सन्देश भूले हो जब,
नित रोज इंसानियत का खून कर आते हो,
कैसे कह दूँ रमजान मुबारक,
की तुम हिंदुस्तानी होकर भी वन्देमातरम से कतराते हो।
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मन होता है तुम्हें कभी आदाब कहूँ,
और मुख से तुम्हारे भी जय श्री राम सुनूं,
तुम कहते हो ऐसा करते ही तुम काफ़िर हो जाओगे,
तो मैं आदाब कहके म्लेच्छ न हो जाऊंगा?
-© -सन्नी कुमार
(Not to hurt anyone but again its what i have felt, on the name of supreme sacrificing innocent animals are cruel, terrorism on the name of religion is shameful act.
Though i accept that there are good and bad everywhere and my wishes to all who celebrates it in a peaceful way, and follows the real essence of religion that is humanity. Sorry n Thank you!]
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दिल कहता है कलम छोड़, अब बन्दूक उठा लूँ

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दिल कहता है कलम छोड़, अब बन्दूक उठा लूँ,
स्याही फीके हो गए, गदर से अपनी बात सूना दूँ,
शिकायतों का हो दौर खत्म,
कपूतों को उनके अंजाम बता दूँ,
दिल कहता है कलम छोड़, अब बन्दूकें उठा लूँ।

जेहादी कट्टरता ने बहकाया बहुत, की थोडा इनको भी समझा दूँ,
भ्रस्टाचारी कांपे थरथर, कुछ ऐसी दहशत फैला दूँ,
गधों को घोड़े संग दौराने की जिद को फौरन रुकबा दूँ,
दिल कहता है कलम छोड़, अब बन्दूकें उठा लूँ।

-सन्नी कुमार


“Dil hai kalam chhod,
ab bandook utha loon,
syahi pheeke ho gaye,
gadar se apni baat sunaa doon,
shiqayton ka ho daud khatm,
kaputon ko unke anjaam bataa du,
dil kahta hai kalam chhod,
ab bandook utha loon..

Jehaadi kattarta ne bahkaaya bahut,
ki thoda inko bhi samjha doon,
bhrastachaari kaape tharthar,
kuchh aisi dahshar phailaa doon,
gadho ko ghode sang duudane ki,
Jeed phauran rukwa doon,
dil kahta hai kalam chhod,
ab bandook uthaa loon…”

आज कल बीमार हूँ

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अपनी बातों को शब्दों में आज कहना नहीं आ रहा,
अपनों से मिलकर आज नजरें मिलाना नहीं आ रहा,
चुप तो हूँ आज पर आज कोई शांति नहीं है,
आज आंसुओं से गम को धोना भी नहीं आ रहा।

सोचता हूँ छोड़ दू अब लिखना अपनों को,
सोचता हूँ छोड़ दू अब जीना सपनों को,
अब जब फ़र्क़ नहीं परता उनपर मेरे शब्दों का,
सोचता हूँ विराम दूँ अब अपने अल्फ़ाज़ों को।

सुन्न हो रही हथेली को और कितना बोझ दूँ,
जीना छूट गया पीछे, लिखूं अब किस झूठ को,
भाव थे जो सारे आज आंसुओ में बहा दिए,
ख्वाब देखे थे जो कभी, आज है सब जला दिए गए।

न कहने को कुछ नया है,
न अपने अब अपनी सुनाते है,
एक दुरी है दरम्यान,
शिकायत है की मेरी बातें नही ठीक,
न तरीका न इरादा कुछ भी नही ठीक,
मैं भी मानता हूँ की अब कुछ नहीं ठीक,
न हिम्मत है अब और की कर सकूँ सब ठीक,
सो सोचता हूँ कहीं दूर चला जाऊं,
पर खुद से मैं पीछा कहो कैसे छुड़ाऊं?
– सन्नी कुमार
……………………………………………

कृष्णा जी, भेजो न उसको आज

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कृष्णा जी, भेजो न उसको आज,
की पूछ लूँ कैसी है वो,
किस हाल में है..
मैं भूल रहा हूँ उसको,
क्या वो भी भूल गयी है हमको..

कृष्णा जी, भेजो न उसको आज,
की उससे आज फिर मैं दुहराऊं,
वो बिलकुल मुझसी है, मेरे ख्वाबों सी है,
उससे कहना, उसकी सुनना,
उसमे फना होने की हसरत,
अब भी मुझमे है.

कृष्णा जी, भेजो न उसको आज,
की उससे थोडा लाड दीखाना है,
थोडा प्यार जताना है.
जाने कितनी होगी खाली वो,
की उसमे थोडा रंग भी भरना है..

कृष्णा जी, भेजो न उसको आज,
की उसको मनाना है और उससे कहना है,
की उससे प्यार नहीं, वो ही प्यार है,
उससे ख्वाब नहीं, वो ही ख्वाब है,
उसकी बातें नहीं अब वो ही बात है..

कृष्णा जी, भेजो न उसको आज,
की उससे मिलके हंसना है,
थोडा कल पे भी रोना है,
हूँ जिन्दा अब भी,
मुझे ये बतलाना है..

कृष्णा जी, भेजो न उसको आज,
की आज मुझे फिर दो पल जीना है…

-सन्नी कुमार

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Krishna Jee, Bhejo na usko aaj,
ki puchh lu kaisi hai wo,
kis haal mein hai,
mai bhul rahaa hun usko,
kya wo bhi bhul gayee hai humko..

Krishna Jee, Bhejo na usko aaj,
ki usase aaj phir mai duhraaun,
wo bilkul mujhsi hai, mere khwabon si hai,
usase kahna, uski sunanaa,
usme fanaa hone ki hasrat,
ab bhi mujhmein hai..

Krishna Jee, Bhejo na usko aaj,
ki usase thoda laad dikhaana hai,
thoda pyar jataana hai,
jaane kitni hogi khaali wo,
ki usme thoda rang bhi bharna hai…

Krishna Jee, Bhejo na usko aaj,
ki usko manaana hai aur usase kahna hai,
ki usase pyar nahi, wo hi pyar hai,
usase khwab nahi, wo hi khwab hai,
uski baatein nahi, ab wo hi baat hai…

Krishna Jee, Bhejo na usko aaj,
ki usase milke hansna hai,
thoda kal pe bhi rona hai,
hun jinda ab bhi,
mujhe ye batlaana hai..

Krishna Jee, Bhejo na usko aaj,
ki mujhe aaj phir do pal jeena hai..

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