क्या कहूँ और क्या लिखूँ,
आज अपनी कविता में..?
शब्दों में सिर्फ फूल लिखूँ,
या कांटो संग कहानी भी?
दिल के जो है जज्बात लिखूँ,
या झेल रही परेशानी भी?
जिंदगी के जश्न और जीत लिखूँ,
या चल रही मन में चिंताएं भी?
आज हिम्मत करता हूँ, सच लिखता हूँ,
अपनों में अपनी बाग़ रखता हूँ…
हूँ सीधा सरल एक नौजवान,
कामयाबी की ख्वाहिश रखता हूँ,
दिन भर भटकने के बाद,
मायूस होकर सोता हूँ..
अगली सुबह वापिस से,
सपने सच करने को लड़ता हूँ…
क्या कहूँ और क्या लिखूँ,
मजबूर मन के हालत पे,
आज हिम्मत करता हूँ, सच लिखता हूँ..
अपनों में अपनी उलझन रखता हूँ..
जान रहा ये मन है मेरा,
माँ(देश) समय आज मांग रही,
पर मुश्किल है बीबी(नौकरी) मेरी,
जो साथ आज नहीं दे रही..
नहीं कर पाना इच्छानुसार,
बड़ा रोष बढाता है,
पर एक छोटी सी कोशिश भी,
बड़ा संतोष दिलाता है..
क्या कहूँ और क्या लिखूँ,
इस दिल के दीवानगी पे,
आज करता याद माशूक को हूँ,
और अपनों में मुहब्बत रखता हूँ..
इस दिल के है जज्बात निराले,
जो फंसा इश्क के चक्कर में ये,
विज्ञान को भी ये झुठलाये,
जो हो देशों दूर हमसे,
उसको सबसे करीब बताये..
दो पल के इन्तेजार में,
जो हो खुद से खींज जाए,
उसी शख्स से घंटों ये,
माशूक का इन्तेजार कराये..
क्या कहूँ और क्या लिखूँ मैं,
इस जीवन के बारे में,
एक कोशिश करता हूँ, सच लिखता हूँ,
आज सबको अपनी बात रखता हूँ..
जिंदगी का ये कटु सत्य है,
की जीना हमें अकेले है,
पर माँ-बाप के आशीष तले,
और साथी के साथ हुए,
ये यात्रा सुगम, सहज कटती है..
वैमनस्य से बड़ा प्यार है,
और सेवा है सहयोग में,
कर्मपथ पे बढ़ते जाना,
यही ये जीवन कहती है..
क्या कहूँ और क्या लिखूँ मैं,
आज अपने बारे में,
हिम्मत करता हूँ, सच लिखता हूँ,
अपनों में अपनी बात रखता हूँ..
-© -सन्नी कुमार[एक निवेदन- आपको हमारी रचना कैसी लगी कमेंट करके हमें सूचित करें. धन्यवाद।]
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