हे कृष्णा,
मेरी कलम में तुम थोड़े,
बंसी के लय घोलो न..
मुझे पढ़कर सबमें प्रेम बढ़े,
ऐसे किस्से मुझसे गढ़वाओं न..
सुनने को सब मुझे भी ललचे,
कुछ ऐसी मायाजाल बिछाओ न..
मेरी कलम में तुम थोड़े,
बंसी के लय घोलो न..
प्रेम-धर्म की स्थापना को,
हे वसुदेव तुम जब उतरते हो,
तो कभी मेरे शब्दों में भी,
अपने संदेश सुनाओ न..
है रण होता रोज आज भी,
कि आज भी युवा-अर्जुन है भ्रम में,
उसे बताने सही-गलत तुम,
उसके मन-मस्तिष्क में बसों न..
मेरी कलम में तुम थोड़े,
गीता-सत्य को घोलो न.
हर जगह फसाने को,
सकुनी पासा थामे बैठा है,
जहाँ युधिष्ठिर रोज दाव हारते है,
और मोह में अंधे दुर्योधन को श्रेष्ठ बताते है,
दिलाने पांडवों को हक़,
हे कृष्ण शंख बजाओ न..
होती है हमेशा सत्य की जीत,
आज के अर्जुनों को बताओं न..
चाहता हूँ जो कहूँ सबसे,
वही पहले तुम्हें सुनाता हूँ,
हे हरि! सच में, यहां खुद को,
मैं भी अकेला ही खुद को पाता हूँ..
आकांक्षाएं मेरी कुछेक जो है,
उसपे दुर्योधनों का ही सत्ता पाता हूँ,
ताउ धृतराष्ट्र की मर्यादा है,
और राजा से बैर कर द्रोही नहीं बनना चाहता हूँ,
पर फिर यह महान जीवन जो व्यर्थ रहेगा,
ऐसा होते भी नही देखना चाहता हूं..
सो इस भवसागर से हे भगवान,
मुझको भी पार लगाओ न,
गर्व लिखूँ, मैं भी गर्व जीऊँ,
मुझको अपना पार्थ बनाओ न,
क्या सही क्या है गलत,
इसके भान कराओ न,
अपने इस अर्जुन को,
रण में मार्ग दिखाओ न..
हे कृष्णा मेरे कविता में,
अपने बंसी के धुन घोलो न,
लिखूं मैं जब-जब धर्म की रक्षा में,
तब तुम मेरे शब्दों में विराजों न..
मेरे जीवन, मेरे आचरण में भी तुम,
कभी अपनी झलक दिखाओं न..
मैं भी जीउ-लिखूं बस प्रेम-धर्म को,
मुझे भी अपना शिष्य बनाओ न..
©सन्नी कुमार
बहुत सुन्दर.. 😊
Dhanywaad. 🙂
Awesome writing
Thanks
Awsm..👍
Thanks
Really enjoyed reading!
Thank you so much
Thank you so much…
Wow!
हर जगह फसाने को,
सकुनी पासा थामे बैठा है- Yes, if we don’t use our self awakens, then it’s really very confusing what’s the play who is playing.
I just read this poem more than twice just for analyse the amazing feeling of the author behind thought l.
Expecting more to be published.👍
Thank You So Much Om Babu. Love u
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Hahahaha 😉 thanks a ton…