तस्वीर किसान का

चुनावी नारों तक ही सिमटा रह जाता है,
क्यूं हक़ किसान का..
बहस-बातें खूब होती है
कर्ज माफी का ऐलान भी होता है,
फिर भी नहीं बदलता,
क्यूं तस्वीर किसान का..

वो जिसके मेहनत से सबका पेट भरता है,
वही अन्नदाता क्यों अक्सर खाली पेट सोता है?

उसकी हर फसल, हर मेहनत का,
क्यों हश्र एक होता है,
बाढ में, सुखाड़ में,
हर मौसम की मार में,
क्यों वो अकेले,
उम्मीदें बांधे सिसकता है,
और जब फसल हो बढ़िया,
क्यों बाज़ार कौड़ियों के भाव खरीदता है?

सरकार खूब देती है आश्वासन,
विपक्ष बस शोर मचाता है,
पर ७० सालो से देश के ‘हल्कू’ को,
क्यों उसके मेहनत का मोल नहीं मिलता है?

खेती छोड़ चुका युवा, उनको ये घाटे का सौदा लगता है,
गलती उनकी भी नहीं कि उनको किताबों मे खेती सौदा है, मौसमी जुआ है,
यही तो पढाया जाता है,
खेती का साहस युवा करे भी कैसे,
उसको विदर्भ के किसानों का हाल दहलाता है।

70 सालों से, देश के हर नारों में,
चर्चा किसानों का होता हर चौराहों पर,
संसद हो, सड़क हो, या कोई सम्मेलन
सिर्फ बातें ही होती है,
वायदे ही होते है,
पर किसान के समर्थन में क्यों कोई नीति नहीं बनता?

हर रोज नया नारा आता है,
किसानों के नाम से करने कोई तमाशा आता है,
जिसको गेंहू और जौ का फर्क भी न मालूम,
वो भी किसानों की काया पलटने का स्वांग रचाता है,
भाषण होती है, बड़े-बड़े लेख लिखे जाते है,
फिर भी क्यों, न तकदीर बदलती है,
न तस्वीर किसान का?
-सन्नी कुमार (किसान पुत्र)Tasweer Kisaan Ka

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