लौट के बुद्धू घर को आये??
ऐसा ही कुछ लग रहा है अपने सन्दर्भ में। सिखने-सिखाने के सफर में आज अपने गाँव पहुँच गया हूँ, उत्साहित भी हूँ और डर भी रहा हूँ… उत्साह है की गाँव को फिर से अपने रंग में रँगने का मौका मिलेगा और डर इसलिए की यहाँ लोग बड़ी जल्दी आपको फ्रॉड कह देते है(पिछले सप्ताह ही एक फेसबुक मित्र ने फ्रॉड की उपाधि दी और कारन था इस कार्यक्रम में विलम्ब होना).
वैसे 2009 तक की बहुत सु अच्छी यादें भी है, और शायद आप को पता भी हो की पहले गाँव में शुभ सुरभि कल्याण संस्थान नाम से एक ngo चलता था, गाँव से चन्डा लेकर गाँव के बच्चो को मंच देने का काम हम सभी करते थे, इसी मंच से युवा श्री का सम्मान भी मिला था और बाद में संयोजक कहाने का मान भी(भले उम्र कम थी)..
उन्ही दिनों हमलोगों ने rti के तहत कुछ सुचना मांगी जिसको मिलने में 1 साल लगा, सुचना देरी से मिली इसलिए कोई पैसा नहीं देना परा पर हाँ सचिव को जुरमाना और निष्काशन झेलना परा था…खैर 6 साल बाद फिर से गाँव में हूँ और कोशिश है की एक मंच फिर से हो जहां आज के और आने वाले समय में बच्चों और युवाओं को मौका मिले..
पिछले दफा जो कुनबा बिखडा था उसे फिर से जोड़ सकूँ ये प्रयास भी होगा। वैसे तब जो हमारे मार्गदर्शक थे उनमे आज भी वही उत्साह है पर नए लोग उनको नहीं मिले और सृजनात्मक कार्य बिलकुल ठप हुआ.. पिछले सप्ताह जब मिला उनसे वो खुश थे, उम्मीद है मेरे इस प्रयास को वो(मेरे गुरुजन), अग्रज व् मित्र सराहेंगे….
खुश हूँ बिहार के सबसे बेहतर गाँव, खरौना में आकर।
धन्यवाद
सन्नी कुमार
(http://Kharauna.com)
साधुवाद सनी, एक बहुत अच्छे प्रयास के लिए. अपनी जड़ों में वापस लौटने को ‘
… बुद्धू वापस आये… ‘ नहीं कहते। समझदार कहते है. भगवन से प्रार्थना और
आपको आशीर्वाद, शुभकामना की आप अपनर गाओं को और भी ऊंचाइयों तक पायें. सभी
ऐसे ही जागरूक हो जाएँ तो क्या बात है.
प्रणाम। आपलोगो के स्नेह और आशीर्वाद से हिम्मत मिल रहा है और सो इन कामों में लग जाते है… उम्मीद है प्रयास रंग लाएगा 🙂