तुम्हें बेवफा कहूँ तो कैसे

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तुम्हें बेवफा कहूँ तो कैसे की तुमने वफ़ा भी कब किया था,
झूठे किस्सों से हमने क्यों ख्वाबों का महल खड़ा किया था,
तुम्हारा प्रयोग सफल रहा, तुम्हे पुरस्कार भी मिल रहे आज,
पर तुमने जो तोड़े ख्वाब, झूठ भले हो पर आज बिलख रहे थे।

कुछ नए शब्द सीख लिए है तुमने, बेहतर जीने की जद को भी खूब समझने लगी हो,
पर उन शब्दों का क्या जो अब भी इन कानों में गूंज रहे है?
तुम जीयो बेहतर तुम्हे मिलता रहे बेहतर,
पर दौड़ ये बेहयाई की तुम दौड़ोगी कबतक?

आज इल्जाम है की क्यों पुराने पन्ने पलटता हूँ मैं,
क्या करूँ एक ख्वाब बड़ी चालाकी से तुमने बदल था तब,
दिल अगर न होता तो हम, न यकीन करते तुम्हारा,
तुम्हारे फिक्र को, उन शब्दों को सच मानने लगे थे तब,
मालूम न था कि कोई ऐसे भी खेलता है,
यकीन करो शब्दों के जाल से तुम बेहतर फांसती हो।
इश्क़ कहता रहा हु तुम्हे सो अब शिकायत भी नही वाजिब,
पर छुपाऊँ सच को, नही इतना मैं काबिल।

तुम खुश रहो आज बेहतर को पाकर,
जनता हूँ मैं भी तुम क्या जीती थी कल तक,
इश्क़ का हमने कल मखौल था उड़ाया,
अब इश्क़ की बारी है तुम मूल्यों को बचाना।
-सन्नी कुमार

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